Monday 30 June 2014

आरज़ू शायरी




आरज़ू


जब तुम थे तो कुछ ग़म ना था
हम थे एक बेख़बर परिंदे के तरह
कभी इस कदर तन्हा होके याद करेंगे तुम्हे
सोचा ना था
ज़िंदगी तुम्हारे बिना भी जियेंगे सोचा ना था
आज आलम ये है की तुम्हारा नाम तक याद नही रहता
हम कभी तुम्हारे थे इसका इल्म तक नही रहता
लोंगो के सामने अदाकारी करते करते हक़ीकत ही बन गयी है ये
की ना तुम हो ना तुम्हारी यादें है बस एक धुंधला सा
कोहरा आ जाता है आखों के सामने कभी कभी
और कभी कभी मोह्बब्त के गानो पे आँखों के कोने मैं
कुछ हल्का सा पानी आ जाता है
अक्सर तो सबसे छुपा लेते हैं पैर कभी कभी जैसे
ये दिल बैठ जाता है, तब इससे समझा नही पाते
कुछ इतना बेज़ार हो जाता है की कुछ भी आरज़ू नही करता
एक वक़्त था दिल कीई बेवक़्त आरज़ू से परेशन थे हम
और एक आज का दौर है आरज़ू की कमी से हैरान है हम...

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